भारत की तरफ से ओलंपिक मेडल विजेता
भारत की तरफ से ओलंपिक मेडल विजेता
भारत ने 1900 संस्करण के बाद से 24 ओलंपिक खेलों में 35 पदक अपने नाम किए हैं। यहां सभी भारतीय ओलंपिक विजेताओं के बारे में जानें।
अपने डेब्यू में पदक की दौड़ ने ओलंपिक में भारत के अभियान की शुरुआत की। बता दें कि तब से भारत ने 24 ओलंपिक खेलों में 35 पदक जीते हैं। जिसमें स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक शामिल हैं।
भारत ने ओलंपिक में जितने भी पदक जीते हैं, उनकी पूरी जानकारी यहां दी जा रही है।
भारत ने अपने पहले ओलंपिक की शुरुआत 1900 के पेरिस ओलंपिक में नॉर्मन प्रिचर्ड (Norman Pritchard) के साथ की थी। आधुनिक ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में पहले भारतीय प्रतिनिधि ने एथलेटिक्स में पांच पुरुष स्पर्धाओं में भाग लिया था, जिनमें 60 मीटर, 100 मीटर, 200 मीटर, 110 मीटर और 200 मीटर बाधा दौड़ शामिल है। यही नहीं उन्होंने 200 मीटर स्प्रिंट और 200 मीटर बाधा दौड़ (हर्डल रेस) में दो रजत पदक जीते थे। देश के आजाद होने से पहले नॉर्मन प्रिचर्ड ने भारत के लिए पहला इंडिविजुअल मेडल जीता।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - एम्स्टर्डम 1928
भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने दिग्गज हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद (Dhyan Chand) के नेतृत्व में 29 गोल किए और एक भी गोल खाए बिना उन्होंने अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता। उस दौरान ध्यानचंद ने फाइनल में नीदरलैंड्स के खिलाफ हैट्रिक बनाते हुए पूरे टूर्नामेंट में कुल 14 गोल किए। भारतीय हॉकी टीम का ओलंपिक में यह पहला मेडल था।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - लॉस एंजिल्स 1932
भारतीय हॉकी टीम का दबदबा ओलंपिक गेम्स में बना रहा। ध्यान चंद जैसे खिलाड़ियों से सजी इस टीम ने फाइनल में जापान को एकतरफा मुकाबले में 11-1 से हराकर बड़ी जीत हासिल की। इस मुकाबले में ध्यान चंद के अलावा रूप सिंह (Roop Singh) भी स्टार खिलाड़ी रहे।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - बर्लिन 1936
भारतीय हॉकी और गोल्ड मेडल की चमक के बीच मानो एक अटूट रिश्ता पनप रहा था। 1938 बर्लिन ओलंपिक में भी भारत ने शानदार प्रदर्शन करते हुए फाइनल मुकाबले को 8-1 से अपने नाम किया और एक और गोल्ड मेडल पर भारतीय झंडे की मुहर लगा दी।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - लंदन 1948भारत अब स्वतंत्र हो चुका था और इसी वजह से इस बार के ओलंपिक गेम्स ख़ास होने वाले थे। बलबीर सिंह सीनियरओलंपिक डेब्यू में भारत के अभियान की शुरुआत दो मेडल के साथ हुई। तब से अब तक भारत ने 24 ओलंपिक खेलों में 28 पदक जीते हैं।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - हेलसिंकी 1952
भारतीय हॉकी टीम के लिए ओलंपिक गेम्स में गोल्ड मेडल जीतना मानो एक आदत सी बन गई थी। हेलसिंकी गेम्स में कुछ ऐसा ही देखने को मिला जब भारत ने नीदरलैंड को फाइनल में 6-1 से हराया। बलबीर सिंह सीनियर ने 3 मैचों में 9 गोल किए। फाइनल में भी उन्होंने 5 गोल किए, जो कि ओलंपिक फाइनल में किसी एक खिलाड़ी द्वारा किए जाने वाले सबसे ज्यादा गोल का रिकॉर्ड है।
केडी जाधव, कांस्य पदक - मेंस बैंटमवेट- रेसलिंग, हेलसिंकी 1952
पहलवान खशाबा दादासाहेब (Khashaba Dadasaheb Jadhav) जाधव पुरुषों की फ्रीस्टाइल बैंटमवेट श्रेणी में कांस्य पदक के साथ भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता बने। यह पहलवान के लिए उनकी मेहनत का ईनाम था। इस रेसलर को अपनी ओलंपिक यात्रा के लिए धन इकट्ठा करने के लिए दर-दर भटकना पड़ा लेकिन अंत में ना केवल उन्होंने ओलंपिक में हिस्सा लिया बल्कि पदक भी जीता।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - मेलबर्न 1956
इस ओलंपिक का गोल्ड मेडल भारतीय हॉकी टीम के लिए गेम्स का लगातार छठा गोल्ड साबित हुआ। शानदार बात तो यह थी कि इस पूरी प्रतियोगिता में भारत ने एक भी प्रतिद्वंदी को एक भी गोल मारने का मौका नहीं दिया। फाइनल मुकाबला भारत और पाकिस्तान के बीच रहा जहां भारत ने उन्हें 1-0 से पटकनी देकर ओलंपिक गेम्स को अपने नाम किया। फाइनल में टीम के कप्तान बलबीर सिंह सीनियर हाथ में फ्रेक्चर होने के बाद भी खेले।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, रजत पदक - रोम 195
भारत का ओलंपिक में गोल्डन पीरियड साल 1960 रोम में खत्म हुआ। भारतीय टीम को फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ 1-0 से हार झेलनी पड़ी, जिसकी वजह से टीम को रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - टोक्यो 1964
1964 टोक्यो ओलंपिक में फाइनल खेलने के लिए भारत और पाकिस्तान लगातार तीसरी बार मैदान में उतरे। पिछले दो फाइनल में दोनों ही मुल्कों ने एक एक मुकाबला जीतकर गोल्ड मेडल हासिल किया था, लेकिन भारत पिछली हार को भूला नहीं था और इस बार उन्होंने बदला ले ही लिया। इस फाइनल में भारतीय हॉकी टीम ने पाकिस्तान को 1-0 से मात देकर गोल्ड मेडल पर दोबारा हक जमाया। इस ओलंपिक में भारत ने ग्रुप स्टेज में 4 मुकाबलों में जीत हासिल की तो 2 मुकाबले ड्रॉ हुए। वहीं सेमीफाइनल में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को शिकस्त दी थी।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, कांस्य पदक - मैक्सिको सिटी 1968
1968 मैक्सिको ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का सफ़र उतार चढ़ाव भरा रहा। इस समय तक यूरोप का प्रदर्शन हॉकी में लगातार निखर रहा था। भारत ने मैक्सिको, स्पेन को हराकर जापान के खिलाफ वॉकओवर हासिल किया लेकिन सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया से 2-1 से हार गया। भारत ने पश्चिम जर्मनी को 2-1 से हराकर कांस्य पदक जीता। इसी के साथ भारत ओलंपिक में पहली बार टॉप 2 में स्थान नहीं बना पाया।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, कांस्य पदक - म्यूनिख 1972
1972 म्यूनिख ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने ग्रुप स्टेज पर बेहतरीन खेल दिखाया, लेकिन आगे के राउंड में वह लड़खड़ाते दिखे। इस्राइली टीम पर हमले के कारण उनका सेमीफाइनल दो दिन आगे बढ़ा दिया गया और इससे टीम की लय प्रभावित हुई, जिस वजह से उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ 2-0 से हार मिली। हालांकि जल्दी ही टीम ने वापसी की और नीदरलैंड्स को हराते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया।
भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - मास्को 1980
मॉन्ट्रियल 1976 में एक निराशाजनक प्रदर्शन के कारण भारतीय टीम 7वें स्थान पर रही। लेकिन इसके बाद उन्होंने मास्को 1980 में फिर से वापसी की। शुरुआती राउंड में भारत ने तीन मैच जीते और दो मैच उनके ड्रॉ रहे। फाइनल में भारतीय टीम ने स्पेन को 4-3 से हराकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। यह ओलंपिक में भारत का आखिरी हॉकी स्वर्ण है।
लिएंडर पेस, कांस्य पदक - पुरुष एकल टेनिस, अटलांटा 1996
1996 एटलांटा ओलंपिक तक भारत को मेडल जीते हुए 4 सीज़न यानि 16 साल हो चुके थे। इस बीच एक युवा ने भारत की कमान संभाली और टेनिस में लिएंडर पेस (Leander Paes) ने भारत को ब्रॉन्ज़ मेडल जितवाया। मेडल जीतने के साथ साथ पेस ने बहुत सी वाह वाही भी बटोरीं। सेमीफाइनल में आंद्रे अगासी (Andre Agassi) से हारने के बाद पेस ने कांस्य पदक के मैच में फर्नांडो मेलिगानी (Fernando Meligani) को हराया।
कर्णम मल्लेश्वरी, कांस्य पदक - वूमेंस 54 किग्रा वेटलिफ्टिंग, सिडनी 2000
2000 सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी (Karnam Malleswari) ने वेटलिफ्टिंग खेल के 54 किग्रा वर्ग में अपनी काबिलियत जमाते हुए ब्रॉन्ज़ मेडल जीता और ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी। इस खिलाड़ी नो स्नैच वर्ग में 110 किग्रा और क्लीन एंड जर्क में 130 किग्रा भार उठाया था, और कुल 240 किग्रा उठाकर कांस्य पदक अपने नाम किया।
राज्यवर्धन सिंह राठौर, रजत पदक - मेंस डबल ट्रैप शूटिंग, एथेंस 2004
2004 एथेंस ओलंपिक में इस बार खेल बदल गया था। भारत शूटिंग में अव्वल रहा और यह मेडल आया राजस्थान के राज्यवर्धन सिंह राठौड़ (Rajyavardhan Singh Rathore) की तरफ से। इतना ही नहीं सिल्वर मेडल जीतकर राठौर पहले भारतीय शूटर बने जिन्होंने ओलंपिक गेम्स में पोडियम में जगह बनाई।
अभिनव बिंद्रा, स्वर्ण पदक - मेंस 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग, बीजिंग 2008
ओलंपिक में भारत का सबसे यादगार पल बीजिंग 2008 में आया जब अभिनव बिंद्रा (Abhinav Bindra) ने मेंस 10 मीटर एयर राइफल में ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीता। भारतीय निशानेबाज ने अपने अंतिम शॉट के साथ लगभग 10.8 का स्कोर किया, जिससे भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक सुनिश्चित हुआ।
विजेंदर सिंह, कांस्य पदक - मेंस मिडिलवेट बॉक्सिंग, बीजिंग 2008
2008 बीजिंग ओलंपिक: इस संस्करण में विजेंदर सिंह (Vijender Singh) बने पहले भारतीय बॉक्सर, जिन्होंने अपनी सरज़मीं के लिए मेडल जीता था। हरियाणा के इस मुक्केबाज़ ने कार्लोस गौन्गोरा (Carlos Góngora) को 9-4 से हराकर क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया, इस जीत के साथ उन्होंने एक मेडल तो देश के लिए पुख्ता कर ही लिया था। हालांकि इमिलिओ कोरिया (Emilio Correa) के खिलाफ वह ब्रॉन्ज़ मेडल मुकाबले में 5-8 से हार गए और गोल्ड जीतने का उनका सपना अधूरा रह गया सुशील कुमार, कांस्य पदक - मेंस 66 किग्रा कुश्ती, बीजिंग 2008
जाधव के बाद भारत को रेसलिंग में मेडल जीतने में 56 साल लग गए। इस सुशील कुमार (Sushil Kumar) ने 66 किग्रा वर्ग में पदक जीतते हुए खत्म किया। तकरीबन 70 मिनट के मुकाबले में सुशील ने जीत हासिल की और उन्हें ब्रॉन्ज़ मेडल से नवाज़ा गया। अपने शुरुआती मुकाबले में हारने के बाद, सुशील कुमार ने रेपेचेज राउंड में कांस्य पदक जीता।
गगन नारंग, कांस्य पदक - मेंस 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग, लंदन 2012
काउंटबैक के कारण पिछले ओलंपिक में अंतिम दौर से बाहर होने के बाद गगन नारंग (Gagan Narang) ने लंदन 2012 में मेंस 10 मीटर एयर राइफल में कांस्य पदक जीता। गगन नारंग ने दुनियाभर की नजरों के सामने चीन के वांग ताओ (Wang Tao) और इटली के निकोलो कैंप्रियानी (Nicolo Campriani) के साथ मुश्किल फाइनल खेला और तीसरे स्थान पर रहे।
सुशील कुमार, रजत पदक - मेंस 66 किग्रा रेसलिंग, लंदन 2012
उद्घाटन समारोह के लिए भारत के ध्वजवाहक सुशील कुमार 2012 में भारत की सबसे बड़ी पदक आशा थे। अंत में थकावट के कारण उनका शरीर जवाब दे चुका था और वह काफी दर्द में भी थे, लेकिन फाइनल से पहले वह इससे उबर गए। सुशील कुमार फाइनल में तत्सुहिरो योनेमित्सु (Tatsuhiro Yonemitsu) से हार गए और उन्हें रजत से संतोष करना पड़ा। वह भारत के एकमात्र एथलीट है, जिन्होंने व्यक्तिगत स्पर्धा में दो बार के ओलंपिक पदक जीते।
विजय कुमार, रजत पदक - मेंस 25 मीटर रैपिड पिस्टल शूटिंग, लंदन 2012
इस ओलंपिक से पहले इस शूटर को कम ही लोग जानते थे। निशानेबाज विजय कुमार (Vijay Kumar) ने 25 मीटर रैपिड पिस्टल में रजत पदक के साथ रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज करवा लिया। छठे दौर में टाई होने के साथ उन्होंने चीन के डिंग फेंग (Ding Feng) के साथ मुकाबला किया लेकिन अंत में विजय कुमार ने फेंग को हराकर अंतिम दौर में प्रवेश किया। हालांकि, क्यूबा के लेउरिस पुपो (Leuris Pupo) फाइनल में उनसे बेहतर साबित हुए और विजय रजत पदक ही जीत पाए।
मैरी कॉम, कांस्य पदक - वूमेंस फ्लाईवेट बॉक्सिंग, लंदन 2012
लंदन 2012 ओलंपिक से पहले ही मैरीकॉम (Mary Kom) की गिनती महान खिलाड़ियों में होती थी और इस ओलंपिक में मैरी कॉम ने महिला फ्लाईवेट वर्ग में कांस्य पदक जीतकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा लिया। मणिपुर में जन्मी यह मुक्केबाज पूरे टूर्नामेंट में अच्छी लय में थी लेकिन सेमीफाइनल में ग्रेट ब्रिटेन की उस समय की चैंपियन निकोला एडम्स (Nicola Adams) ने उन्हें हरा दिया।
योगेश्वर दत्त, कांस्य पदक - मेंस 60 किग्रा कुश्ती, लंदन 2012
लंदन 2012 में तीन ओलंपिक में हिस्सा ले चुके अनुभवी पहलवान योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt) ने आखिरकार अपने बचपन के सपने को पूरा किया और 60 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीता। उन्होंने अंतिम रेपेचेज राउंड में उत्तर कोरिया के री जोंग म्योंग (Ri Jong Myong) को सिर्फ 1:02 मिनट में हराया।
साइना नेहवाल, कांस्य पदक - वूमेंस सिंगल्स बैडमिंटन, लंदन 2012
भारत के लिए बैडमिंटन के खेल में बदलाव तब आया जब साइना नेहवाल (Saina Nehwal) ने ओलंपिक गेम्स में मेडल जीता। नेहवाल महिलाओं में ही नहीं बल्कि भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में मेडल जीतने वाले पहली खिलाड़ी बनी। चीन की वांग झिन के खिलाफ मुकाबले में नेहवाल के हाथ ब्रॉन्ज़ मेडल आया था।
पीवी सिंधु, रजत पदक - वूमेंस सिंगल्स बैडमिंटन, रियो 2016
नेहवाल के ब्रॉन्ज़ के बाद भारत की पीवी सिंधु (PV Sindhu) ने सिल्वर जीता । जी हां, भारतीय शटलर पीवी सिंधु ने रियो ओलंपिक में बेहतरीन प्रदर्शन की बदौलत सिल्वर मेडल भारत को तोहफे में दिया। यकीन मानिए सिंधु और स्पेन की कैरोलिना मारिन (Carolina Marin) के बीच 83 मिनट का महामुकाबला हुआ और मारिन ने इस जीत के साथ अपने देश को गोल्ड मेडल से नवाज़ा। हालांकि सिंधु गोल्ड तो न जीत पाईं लेकिन उनका नाम भारतीय बैडमिंटन इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया।
साक्षी मलिक, कांस्य पदक - वूमेंल 58 किग्रा रेसलिंग, रियो 2016
भारत के ओलंपिक दल में देर से प्रवेश करने वाली साक्षी मलिक (Sakshi Malik) ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला भारतीय पहलवान बनीं। उन्होंने 58 किग्रा कांस्य पदक जीतने के लिए किर्गिस्तान की ऐसुलु टाइनीबेकोवा (Aisuluu Tynybekova) को 8-5 से हराया। इसी के साथ भारत ने लगातार तीन खेलों में ओलंपिक कुश्ती पदक जीता है।
मीराबाई चानू, रजत पदक - वूमेंस 49 किग्रा वेटलिफ्टिंग, टोक्यो 2020
भारतीय वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने रियो 2016 की निराशाजनक प्रदर्शन को पीछे छोड़ते हुए महिलाओं के 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक हासिल किया। इसके साथ ही उन्होंने इस दौरान कुल 202 किग्रा भार उठाया। यह उनका पहला ओलंपिक पदक है और उन्होंने कर्णम मल्लेश्वरी के बाद ओलंपिक पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय वेटलिफ्टर बन गईं हैं। आपको बता दें कि यह टोक्यो ओलंपिक में भारत का पहला पदक है।
लवलीना बोरगोहेन, कांस्य पदक - वूमेंस वेल्टरवेट (64-69 किग्रा), टोक्यो 2020
अपने ओलंपिक डेब्यू में लवलीना बोरगोहेन ने महिलाओं के 69 किग्रा में तुर्की की शीर्ष वरीयता प्राप्त बुसेनाज़ सुरमेनेली से सेमीफाइनल में हारने के बाद टोक्यो 2020 में कांस्य पदक जीता।
लवलीना बोरगोहेन ने क्वार्टर फाइनल में चीनी ताइपे की निएन-चिन चेन को हराकर पदक पक्का किया था।
पीवी सिंधु, कांस्य पदक - वूमेंस सिंगल्स बैडमिंटन, टोक्यो 2020
बैडमिंटन क्वीन के नाम से मशहूर पीवी सिंधु ने सुशील कुमार के बाद दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला और दूसरी भारतीय एथलीट बन गई हैं।
जहां पीवी सिंधु ने महिला सिगल्स मुकाबले में चीन की ही बिंगजियाओ को 21-13, 21-15 से हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया। बता दें कि इसी के साथ टोक्यो 2020 में भारत का यह तीसरा पदक हो गया है। जो रियो 2016 से एक पदक अधिक है।।
रवि कुमार दहिया – टोक्यो 2020 मेंस फ्रीस्टाइल 57 किग्रा
रवि कुमार दहिया (Ravi Kumar Dahiya) ने अपने पहले ही ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर भारतीय फैंस को खुश कर दिया।
23 साल के रवि कुमार दहिया टोक्यो 2020 में पुरुषों की 57 किग्रा कुश्ती के फाइनल में दो बार के विश्व चैंपियन आरओसी के जावुर उगुएव (Zavur Uguev) से हार गए, और उन्हें गोल्ड की जगह सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा। इससे पहले रवि ने वर्ल्ड चैंपियनशिप के पूर्व सिल्वर मेडलिस्ट कजाकिस्तान के नुरिस्लाम सानायेव को हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई थी, और भारत के लिए मेडल पक्का कर दिया था।
भारतीय पुरुष हॉकी टीम - कांस्य पदक - टोक्यो 2020
41 साल के इंतजार के बाद, भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने आखिरकार एक और ओलंपिक पदक हासिल कर लिया है। बता दें कि टीम को आखिरी पदक 1980 मास्को ओलंपिक में मिला था।
एक समय 3-1 से पिछड़ने के बाद भारत ने जबरदस्त वापसी करते हुए जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक अपने नाम कर लिया।
यह उनका तीसरा ओलंपिक कांस्य पदक है - 1968 और 1972 के खेलों के बाद - और कुल मिलाकर यह उनका 13 वां ओलंपिक पदक। यह टोक्यो 2020 में भारत का पांचवां पदक था।
बजरंग पुनिया, ब्रॉन्ज़ मेडल - मेंस 65 किग्रा रेसलिंग, टोक्यो 2020
पहलवान बजरंग पुनिया टोक्यो 2020 में शानदार प्रदर्शन करते हुए रेसलिंग में पदक अपने नाम किया। जहां बजरंग पुनिया ने पुरुषों के 65 किग्रा फ्रीस्टाइल कुश्ती के प्लेऑफ मुकाबले में कजाकिस्तान के दौलेट नियाज़बेकोव को हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया। बता दें कि यह टोक्यो ओलंपिक में भारत का छठा पदक था।
नीरज चोपड़ा, गोल्ड मेडल, मेंस जेवलिन थ्रो - टोक्यो 2020
भारत के नीरज चोपड़ा अभिनव बिंद्रा के बाद दूसरे इंडिविज़ुअल एथलीट बन गए हैं, जिन्होंने ओलंपिक चैंपियन का खिताब अपने नाम किया है। उन्होंने पुरुषों की भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता। जहां उनका 87.58 मीटर का दूसरा प्रयास टोक्यो ओलंपिक में भारत का 7वां पदक हासिल करने के लिए काफी था।