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----निर्देश: दिए-गए-गद्यांश-को-पढ़कर-निम्नलिखित-प्रश्नों-के-सही-विकल्प-छांटिए।--आदिम-आर्य-घुमक्कड़-ही-थे।-यहाँ-से-वहाँ-वे-घूमते-ही-रहते-थे।-घूमते-भटकते-ही-वे-भारत-पहुँचे-थे।-यदि-घुमक्कड़ी-का-जीवन-उन्होंने-धारण-नही-किया-होता,-यदि-वे-एक-स्थान-पर-ही-रहते,-तो-आज-भारत-में-उनके-वंशज-न-होते।-भगवान-बुद्ध-घुमक्कड़-थे-।-भगवान-महावीर-घुमक्कड़-थे।-वर्षा-–ऋतु-के-कुछ-महीनों-को-छोड़कर-एक-स्थान-में-रहना-बुद्ध-के-वश-का-नहीं-था।-35-वर्ष-की-आयु-में-उन्होंने-बुद्धत्व-प्राप्त-किया।-35-वर्ष-से-80-वर्ष-की-आयु-तक-जब-उनकी-मृत्यु-हुई,-45-वर्ष-तक-वे-निरंतर-घूमते-ही-रहे।-अपने-आपको-समाज-सेवा-"र-धर्म -प्रचार-में-लगाये-रहे।-अपने-शिष्यों-से-उन्होंने-कहा-था-‘चरथभिक्खवे-चारिक’-हे-भिझु"ं!-घुमक्कड़ी-करो-यघपि-बुद्ध-कभी-भारत-के-बाहर-नहीं-गए,-किन्तु-उनके-शिष्यों-ने-उनके-वचनों-को-सिर-आँखों-पर-लिया-"र-पूर्व-में-जापान,-उत्तर-में-मंगोलिया,-पश्चिम-में-मकदूनिया-"र-दक्षिण-में-बाली-द्वीप-तक-धावा-मारा।-श्रावण-महावीर-ने-स्वच्छंद-विचरण-के-लिए-वस्त्रों-तक-को-त्याग-दिया।-दिशा"ं-को-उन्होंने-अपना-अम्बर-बना-लिया,-वैशाली-में-जन्म-लिया,-पावा-में-शरीर-त्याग-किया।-जीवनपर्यन्त-घूमते-रहे।-मानव-के-कल्याण-के-लिए-मानवों-के-राह-प्रदर्शन-के-लिए-"र-शंकराचार्य-बारह-वर्ष-की-अवस्था-में-संन्यास-लेकर-कभी-केरल,-कभी-मिथिला,-कभी-कश्मीर"र-कभी-बदरिकाश्रम-में-घूमते-रहे।-कन्याकुमारी-से-लेकर-हिमालय-तक-समस्त-भारत-को-अपना-कर्मक्षेत्र-समझा।-सांस्कृतिक-एकता-के-लिए,-समन्वय-के-लिए,-श्रुति-धर्म-की-रक्षा-के-लिए-शंकराचार्य-के-प्रयत्नों-से-ही-वैदिक-धर्म-का-उत्थान-हो-सका।
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 महावीर स्वामी का जन्म कहाँ हुआ था?

 
निर्देश: दिए गए गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प छांटिए।
आदिम आर्य घुमक्कड़ ही थे। यहाँ से वहाँ वे घूमते ही रहते थे। घूमते भटकते ही वे भारत पहुँचे थे। यदि घुमक्कड़ी का जीवन उन्होंने धारण नही किया होता, यदि वे एक स्थान पर ही रहते, तो आज भारत में उनके वंशज न होते। भगवान बुद्ध घुमक्कड़ थे । भगवान महावीर घुमक्कड़ थे। वर्षा –ऋतु के कुछ महीनों को छोड़कर एक स्थान में रहना बुद्ध के वश का नहीं था। 35 वर्ष की आयु में उन्होंने बुद्धत्व प्राप्त किया। 35 वर्ष से 80 वर्ष की आयु तक जब उनकी मृत्यु हुई, 45 वर्ष तक वे निरंतर घूमते ही रहे। अपने आपको समाज सेवा "र धर्म  प्रचार में लगाये रहे। अपने शिष्यों से उन्होंने कहा था ‘चरथभिक्खवे चारिक’ हे भिझु"ं! घुमक्कड़ी करो यघपि बुद्ध कभी भारत के बाहर नहीं गए, किन्तु उनके शिष्यों ने उनके वचनों को सिर आँखों पर लिया "र पूर्व में जापान, उत्तर में मंगोलिया, पश्चिम में मकदूनिया "र दक्षिण में बाली द्वीप तक धावा मारा। श्रावण महावीर ने स्वच्छंद विचरण के लिए वस्त्रों तक को त्याग दिया। दिशा"ं को उन्होंने अपना अम्बर बना लिया, वैशाली में जन्म लिया, पावा में शरीर त्याग किया। जीवनपर्यन्त घूमते रहे। मानव के कल्याण के लिए मानवों के राह प्रदर्शन के लिए "र शंकराचार्य बारह वर्ष की अवस्था में संन्यास लेकर कभी केरल, कभी मिथिला, कभी कश्मीर"र कभी बदरिकाश्रम में घूमते रहे। कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक समस्त भारत को अपना कर्मक्षेत्र समझा। सांस्कृतिक एकता के लिए, समन्वय के लिए, श्रुति धर्म की रक्षा के लिए शंकराचार्य के प्रयत्नों से ही वैदिक धर्म का उत्थान हो सका।
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 महावीर स्वामी का जन्म कहाँ हुआ था?

 
निर्देश: दिए गए गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प छांटिए।
आदिम आर्य घुमक्कड़ ही थे। यहाँ से वहाँ वे घूमते ही रहते थे। घूमते भटकते ही वे भारत पहुँचे थे। यदि घुमक्कड़ी का जीवन उन्होंने धारण नही किया होता, यदि वे एक स्थान पर ही रहते, तो आज भारत में उनके वंशज न होते। भगवान बुद्ध घुमक्कड़ थे । भगवान महावीर घुमक्कड़ थे। वर्षा –ऋतु के कुछ महीनों को छोड़कर एक स्थान में रहना बुद्ध के वश का नहीं था। 35 वर्ष की आयु में उन्होंने बुद्धत्व प्राप्त किया। 35 वर्ष से 80 वर्ष की आयु तक जब उनकी मृत्यु हुई, 45 वर्ष तक वे निरंतर घूमते ही रहे। अपने आपको समाज सेवा "र धर्म  प्रचार में लगाये रहे। अपने शिष्यों से उन्होंने कहा था ‘चरथभिक्खवे चारिक’ हे भिझु"ं! घुमक्कड़ी करो यघपि बुद्ध कभी भारत के बाहर नहीं गए, किन्तु उनके शिष्यों ने उनके वचनों को सिर आँखों पर लिया "र पूर्व में जापान, उत्तर में मंगोलिया, पश्चिम में मकदूनिया "र दक्षिण में बाली द्वीप तक धावा मारा। श्रावण महावीर ने स्वच्छंद विचरण के लिए वस्त्रों तक को त्याग दिया। दिशा"ं को उन्होंने अपना अम्बर बना लिया, वैशाली में जन्म लिया, पावा में शरीर त्याग किया। जीवनपर्यन्त घूमते रहे। मानव के कल्याण के लिए मानवों के राह प्रदर्शन के लिए "र शंकराचार्य बारह वर्ष की अवस्था में संन्यास लेकर कभी केरल, कभी मिथिला, कभी कश्मीर"र कभी बदरिकाश्रम में घूमते रहे। कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक समस्त भारत को अपना कर्मक्षेत्र समझा। सांस्कृतिक एकता के लिए, समन्वय के लिए, श्रुति धर्म की रक्षा के लिए शंकराचार्य के प्रयत्नों से ही वैदिक धर्म का उत्थान हो सका।







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