Explanation
श्रृंगार रस - श्रृंगार रस को रसराज कहा गया है। इसका स्थाई भाव रति होता है श्रृंगार रस में नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति या प्रेम जब रस कि अवस्था में पहुँच जाता है तो वह श्रृंगार रस कहलाता है इसके अंतर्गत सौन्दर्य, प्रकृति, सुन्दर वन, वसंत ऋतु आदि के बारे में वर्णन किया जाता है।
श्रृंगार रस रस दो प्रकार के होते हैं 1- संयोग श्रृंगार रस 2-वियोग श्रृंगार रस
संयोग श्रृंगार - जब नायक नायिका के परस्पर मिलन, स्पर्श, आलिंगन, वार्तालाप आदि का वर्णन होता है तब वहां पर संयोग श्रृंगार रस होता है।
वियोग श्रृंगार रस - जहां पर नायक-नायिका का परस्पर प्रबल प्रेम हो लेकिन मिलन न हो अर्थात नायक-नायिका के वियोग का वर्णन हो वहां पर वियोग रस होता है।